डॉ मधु श्रीवास्तव (Dr. Madhu Shrivastava)- बुंदेली लोक कला की साधक

Dr Madhu Shrivastava_Bundeli Art

डॉ. मधु श्रीवास्तव (Dr. Madhu Shrivastava) का बुंदेली कला में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। मेरे कला जीवन में दो ही चित्रकारों को मैंने देखा जिन्होंने बुंदेली कला के प्रति अपना जीवन लगा दिया। उनमें से एक डॉ शुभेष एवं है और दूसरी डॉ मधु श्रीवास्तव रहीं हैं।

शुरू से ही डॉ. मधु श्रीवास्तव (Dr. Madhu Shrivastava) ने बुंदेली कला को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। बुंदेली कला में ही उन्होंने रिसर्च की। अपना सम्पूर्ण जीवन बुंदेली कला के उत्थान के लिए समर्पित किया। चलिए एक व्यक्तित्व के रूप उनकी कला यात्रा व जीवन पर प्रकाश डालते हैं।

Dr. Madhu Shrivastava
Dr. Madhu Shrivastava presenting Bundeli Gamjhaa to District Magistrate (DM)

संक्षिप्त जीवन परिचय

आपका जन्म 1958 में हुआ था। इनके पिताजी का नाम चंद्र्भान सिंह श्रीवास्तव था। डॉ मधु श्रीवास्तव की बचपन से ही कला में गहरी रुचि थी। उस समय उनके पिता भी अच्छी चित्रकारी कर लेते थे। अतः वे अक्सर अपने पिता से तरह-तरह के चित्र बनवातीं थीं। फिर उन्हें स्वयं बना के अभ्यास किया करतीं थी।

उन्होंने बारहवीं कक्षा की पढ़ाई कला विषय में विशेष योग्यता से पास की। 1976 में इनका विवाह दिनेश कुमार श्रीवास्तव से हो गया। दिनेश उस समय सिंचाई विभाग में ऑडिटर के पद पर कार्यरत थे। उनके पति ने उनकी कला यात्रा में उनका बहुत सहयोग व प्रोत्साहन दिया। परिणामस्वरूप शादी के बाद उन्होंने कला में उच्च शिक्षा प्राप्त की व कला में शोध भी किया। इसी लिए डॉ मधु श्रीवास्तव अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने पति को देतीं हैं। 18 जून 2023 को अस्वस्थ्य रहने के कारण उनका देहांत हो गया।  

बुंदेली कला की प्रेरणा

डॉ मधु श्रीवास्तव को उत्तर प्रदेश के सरकारी विभाग की तरफ़ से बुंदेलखंड के लोक जीवन पर सर्वे करने को कहा गया। इस काम के लिए उन्होंने बुंदेलखंड क्षेत्र के गाँवों का भ्रमण करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने गावों के घरों में कई चित्र बने देखे। लोगों से बात करने पर पता चला के ये तीज-त्योहारों पर बनाए जाने वाले चित्र हैं। अतः इन चित्रों की लोक कला व लोक परम्परा संस्कृति को उन्होंने समझा। व इस लोक कला को प्रकाश में लाने का बीड़ा उठाया। आगे चल के बुंदेली लोक कला में उन्होंने शोध भी किया। बुंदेली लोक कला पर एक पुस्तक भी उन्होंने लिखी।

बुंदेलखंड आर्ट सोसायटी व मधु जी

मुझे 23 दिसम्बर 2019 को कई वर्षों के बाद मुझे डॉ मधु श्रीवास्तव एक कार्यक्रम में मिलीं। जैसा मैंने उन्हें अपने कॉलेज के समय में देखा था वो उससे कहीं ज़्यादा कमज़ोर नज़र आयीं। उसी समय उनके पति दिनेश जी से मेरी बात हुई। उन्होंने बताया कि मधु जी अब अस्वस्थ रहतीं हैं। उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि बेटा इनको अपने साथ अपने ग्रूप में ले कर कला में पुनः सक्रिय करिये। उनका आग्रह तो मेरे लिए वरदान जैसा था। उनकी जैसी एक वरिष्ठ कलाकार का हमारी सोसायटी में होना बहुत ही लाभकारी बात थी।

अंततः 11 जनवरी 2021 को बुंदेलखंड आर्ट सोसायटी के नव वर्ष मिलन समारोह में वे सम्मिलित हुईं। इसी समारोह में उन्होंने विधिवत रूप से सोसायटी के आजीवन सदस्य के रूप में सदस्यता ग्रहण की। तब से उनके देहांत तक वो बुंदेलखंड आर्ट सोसायटी व हमारे साथ एक माँ के जैसे रहीं। उनका मार्गदर्शन व ममतमायी उपस्थिति के माध्यम से सोसायटी ने कई बड़े-बड़े आयोजन किए। बुंदेलखंड आर्ट सोसायटी ने उन्हें वो सभी मान-सम्मान दिए जिसकी वे हक़दार थी। उन्होंने भी सहजता से एक कार्यकर्ता के रूप में सोसायटी को अपनी सेवाएं दीं।

चित्रकार के रूप में

डॉ. मधु श्रीवास्तव (Dr. Madhu Shrivastava) एक बुंदेली चित्रकार के रूप में काफ़ी लोकप्रिय हैं। वर्तमान समय में तो बुंदेली कला व उनके नाम एक दूसरे का पर्याय है। आज के समय में बुंदेली कला की चर्चा उनके बिना अधूरी हो जाती है। एक बुंदेली चित्रकार के रूप में उन्होंने देश के विभिन्न कोनों में अपनी बुंदेली चित्रकला प्रदर्शित की। उन्हें उनकी लोक कला हेतु कई सारे सम्मान व पुरुष्करों से नवाज़ गया। बुंदेलखंड क्षेत्र में विशेषकर झाँसी में बुंदेली लोक कला के एक मात्र प्रमाणित चित्रकार वही थीं। बुंदेली लोक कला पर उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी। वास्तव में बुंदेली लोक कला के प्रोत्साहन व विकास के लिए उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण शुरुआत की।

अनुसंसाधक के रूप में

बुंदेली कला के पुनरुत्थान व प्रोत्साहन में डॉ मधु श्रीवास्तव का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने बुंदेली कला को अपने अनुसंधान का विषय बनाया। बुंदेली लोक कला में अपने शोध किया। उनके शोध ने बुंदेली कला को समझने में सहयोग दिया ही है। साथ ही बुंदेली कला की विरासत को भी उन्होंने नयी नस्लों को उपहार के रूप में दिया है।

आज़ादी के बाद सुनी पड़ी बुंदेलखंड की कला की इस धारा पर डॉ शुभेश के बाद उन्होंने ही सबसे ज़्यादा अपने परसों से सींचा। उन्होंने अपने शोध को व बुंदेली कला के महत्वपूर्ण साहित्य को अपनी पुस्तक में संजोया। उनकी ये किताब आगे आने वाले समय में कई युवा चित्रकारों को प्रेरणा देगी।

Bundeli Art_Chiteri Art
Ram Darbar in Chiteri Art by Dr. Madhu Shrivastava

सहयोगी व सहकर्मी के रूप में

डॉ. मधु श्रीवास्तव (Dr. Madhu Shrivastava) स्वभाव से सरल व बहुत विनम्र थीं। समय से हार कार्यक्रम में पहुँचना, सक्रिय भूमिका निभाना उनके स्वभाव में था। उनके इसी गुण ने उन्हें एक आकर्षित व प्रभावी व्यक्तित्व के रूप में विकसित किया। साथी चित्रकार या सहयोगी सहकर्मी के रूप में भी वे बहुत ही आसान स्वभाव की थीं। उनके साथ काम करना कभी भी मुश्किल नहीं लगा। मैंने स्वयं उनके साथ विगत 2021 से काम किया। उनका होना मेरे लिए व हमारे संगठन (बुंदेलखंड आर्ट सोसायटी) के लिए एक वरदान था।

Receiving Manu Award_Dr. Madhu Shrivastava
Receiving Manu Award_Dr. Madhu Shrivastava

मधु जी का योगदान व सम्मान

उन्हें बुंदेली कला में अमूल्य योगदान के लिए मनु सम्मान से सम्मानित किया गया। मनु सम्मान महिला दिवस पर बुंदेलखंड आर्ट सोसायटी द्वारा दिया जाने वाला महिलाओं के लिए सर्वोच्च सम्मान है। ये विभिन्न क्षेत्र में स्थापित महिलाओं के उनकी उपलब्धि व योगदान के लिए दिया जाता है। डॉ मधु श्रीवास्तव ने बुंदेली लोक कला में अमूल्य योगदान दिया। अतः उनके देहांत के पूर्व वर्ष २०२२ में उन्हें ये सम्मान दिया गया।

इसके पूर्व वे कई बार देश के विभिन्न कोनों में अपने कला के योगदान हेतु सम्मानित की जा चुकीं हैं। पूर्व प्रधान मंत्री एच डी देवगौडा ने राजभाषा स्वर्ण जयंती समारोह में डॉ मधु श्रीवास्तव को सम्मानित किया था। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से भी राज्य दक्षता का पुरुष्कार वे ले चुकीं हैं। इसके अलावा उन्हें मिलने वाले छोटे-मोटे सम्मन व पुरस्कारों की तो गिनती ही नहीं है।

निष्कर्ष

यह तो था मधु जी के कला व उनके जीवन के बारे में। अंत में कहना चाहता हूँ कि जिस उद्देश्यों को लेकर उन्होंने कला-कर्म शुरू किया था। वो लक्ष्य कोई आसान व छोटा नहीं था। उनके प्रभावी व्यक्तित्व व उनकी प्रतिभा से कुछ लोग भयभीत भी रहते थे। शायद इसी वजह से झाँसी कला जगत में उन्हें वो सम्मन व रुतबा नहीं मिला जिसकी वो हक़दार थीं।

किंतु ख़ुशी की बात ये है कि उनके अंतिम वर्षों में ये कमी झाँसी प्रशासन व बुंदेलखंड आर्ट सोसायटी ने बखूबी पूरी की। झाँसी प्रशासन ने चितेरी कला को ले कर आपको पूरा सम्मान के साथ-साथ जिम्मेदारियाँ भी दीं। इन ज़िम्मेदारियों को उन्होंने बखूबी पूरा भी किया। बुंदेलखंड आर्ट सोसायटी के सभी सदस्यों ने उन्हें काफ़ी सम्मान दिया व उनसे काफ़ी कुछ सीखा भी। सोसायटी ने उन्हें हमेशा अपने प्रत्येक कार्यक्रम में एक वरिष्ठ चित्रकार के रूप में सम्मान दिया। उन्होंने ने भी हम सभी का मार्ग दर्शन व आशीर्वाद दिया।

उनके आशीर्वाद को हम व्यर्थ नहीं जाने देंगे। सम्पूर्ण बुंदेलखंड आर्ट सोसायटी उनको हमेशा याद रखेगी व उनसे प्रेरणा लेती रहेगी। सभी कला जगत की ओर से उन्हें नमन व विनम्र श्रद्धांजली।

-लेखक

मुईन अख़्तर


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