(Dr Shubhesh) डॉ शुभेश झाँसी के सबसे वरिष्ठ कलाकारों में से हैं। (Dr Shubhesh) डॉ शुभेश, बुंदेली कला के साधक कहे जाते हैं। कला के साधक कहे जाने के पीछे कई सारे कारण हैं। इन्हीं कारणों के बारे में और (Dr Shubhesh) के जीवन के बारे में हम इस लेख में पड़ेंगे।
डॉ सुभेश अर्थाथ कला के ज्ञान के भंडार
बुंदेलखंड कला के तपस्वी व साधक डॉ शुभेश कभी न रुकने वाले व कभी न थकने वाले कलाकार हैं | वे कला ज्ञान की एक जीती-जागती किताब की तरह हैं।जिसका भी सामना उनसे होता है तो वो उनके ज्ञान की छटा से नही बच पाता। उनके पास अक्सर कला में खोज करने की बातें, भारतीय कला, अजंता, मुग़ल व बुंदेली कला के विषय में सुनने को मिल जाया करता है। इन भारतीय कला शैलियों के अतिरिक्त भी वो अक्सर यूरोप की कला की बात करना नहीं भूलते थे। यूरोप की कला में रेनसा (पुनरुत्थान) के बारे में वो अपने छात्रों व लोगों को ज़रूर बताया करते थे। उनके पास, यदि कोई नोट करे तो कई सारी बातें थी जो किसी भी नए कलाकार के लिए एक पूरी शिक्षा होती।
मेरा पहला अनुभव
मुझे आज भी याद है कि जब मैं सन 2001 में पहली बार कला की शिक्षा हेतु उनकी शरण में गया था। अपने दिल में कई अरमान लिए, अब तक की उपलब्धि स्वरूप मेरे स्केच बुक मेरे साथ थी। ये स्केच बुक मुझे इससे पूर्व मेरे सभी सम्बन्धियों दोस्तों में बहुत सम्मान और नाम दिला चुकी थी। मन में पहले कला गुरु को अपने काम से प्रभावित करने को मैं बहुत उत्सुक था। बड़ी उम्मीदों के साथ मैंने उनके सम्मुख अपनी स्केच बूक आगे बढ़ाई। पहला पन्ना, फिर दूसरा पन्ना फिर तीसरा पलट कर उन्होंने वो स्केच बूक बंद कर एक किनारे सरका दी। बड़े ही बेरुख़ी से उन्होंने कहा,
बेटा, ये सब बेकार है…। इससे अच्छा होगा कि यदि तुम वो सामने रखा पौधे का गमला चित्रित करो…।
मेरे तो जैसे कि अरमानों पर पानी फिर दिया गया हो। इस अचानक तथा अनचाही प्रतिक्रिया से अंदर ही अंदर ग़ुस्सा उमड़ रहा था। उस ग़ुस्से को क़ाबू में कर अपनी स्केच बुक को उठाया। साथ ही उनके कटु सत्य को समझने का प्रयास करने लगा।
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एक कटु सत्य ने बदली मेरी कला सोच
वास्तव में उनकी ये बेरुख़ी प्रतिक्रिया एक कटु सत्य था।जो बिना किसी परवाह किए मुझे ये बता रहा था कि जो भी आपने अनुकृति (कॉपी वर्क) किया है वो सब बेकार है। वो आप का नही हैं, वो मौलिक नहीं है। सच कहें तो उस महान गुरु का मेरे जैसे नए शिष्य के लिए ये पहला तथा सबसे ज़रूरी पाठ था। जिसको मैंने अपने सीने से लगाया और प्रण किया कि अब से मौलिक काम ही करना है। मेरे इस प्रण ने मेरी कला यात्रा ही बदल डाली।आज जो भी मैं हूँ या जो भी मैंने हासिल किया है उसके पीछे कहीं ना कहीं इस पहले कला पाठ का योगदान है।
इस प्रकार के अनुभव सिर्फ़ मेरे साथ ही नही हुए थे। मेरे कई ओर साथी भी इसी तरह के अनुभव से दो चार हुए थे। उस वर्ष कला के क्षेत्र में एक साथ कई नए कला के बीज उनकी चित्रशाला में अंकुरित हुए थे।
उनकी कार्यशाला का वातावरण
झाँसी में सीपरी बाज़ार में स्थित सनातन धर्म स्कूल के प्रांगण में उनकी कक्षाएँ चला करतीं थीं। सप्ताह में ३ बार ही उनकी ये कक्षाएँ हुआ करतीं थी। जहां बर्ंट साइना, येलो ओकर व सेप ग्रीन जैसे रंगों कि आवाज़ें कानों में गुंजा करती थीं। ये रंग उनकी कक्षाओं में इतने प्रचलित थे की इन रंगों के बिना डॉ शुभेश जैसे गुरु का उल्लेख अधूरा सा लगता है। एक चित्र पूरा होनें में एक दो महीने से लेकर ३ से चार महीने भी लग जाते थे। इस देरी का एक ही उद्देश्य था कि काम में पूर्णता हो। उनके शरण में कुछ शिक्षाएँ बिना सीखे ही मिल जाया करतीं थी जैसे कि काम करने में धेर्य, सहनशीलता और कला साधना।
डॉ शुभेश का व्यक्तिगत जीवन यात्रा

डॉ शुभेश का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव में हुआ था। वो अक्सर बताते थे कि कला की प्रेरणा उनको हाथों में महावर की बिंदी से मिली। उनकी माँ अक्सर उनके हाथों में ऐसी बिंदियां लगाया करतीं थी। आगे चल के राम लीलाओं के व ड्रामों के पर्दे डिज़ाइन से भी उनका रुझान चित्रकला की ओर हुआ। उन्होंने आगरा के डी. ए. वी. कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा पास की। इसके बाद आई. जी. डी. की भी परीक्षा को भी पास किया। 1957 में उन्होंने कला अध्यापक की नौकरी करना प्रारम्भ कर दी। जिसके चलते उन्हें अपने एम. ए. की परीक्षा को बीच में ही छोड़ देना पड़ा। ख़ैर बाद में उन्होंने उसे पूरा किया |
उनके जीवन की आगे की यात्राएँ इस प्रकार रहीं:
- सन 1957 में उन्होंने सेंट ज्युड्स हायर सेकेंडरी स्कूल नगरा झाँसी में नौकरी प्रारम्भ की।
- इसके लगभग सात-माह बाद आपने संगरिया, राजस्थान में कला प्रवक्ता के पद पर अपनी सेवाएँ दीं|
- अंततः 1968 से 1994 तक आपने विपिन बिहारी इन्टर कॉलेज झाँसी में नौकरी की और वहीं से सेवानिवृत हुए|
- 1982 में डॉ शुभेष ने बुंदेलखंड की “चित्र साधना “ विषय पर शोध आगरा विश्वविद्यालय से पूरा किया|
कला का प्रचार व प्रसार
सेवा निवृत्ति के बाद डॉ शुभेश ने झाँसी में अलग-अलग स्थानों पर कला केन्द्रों की स्थापना की। इन कला केंद्रों पर वे बच्चों व कला प्रेमियों को कला की बारिकियाँ सिखाने लगे।
इस प्रकार वे कला के प्रचार व प्रसार में पूरी तरह लग गये। इनके इन्हीं केंद्रों से झाँसी को कुछ नामी चित्रकार भी मिले। इनके शिष्यों की एक लम्बी सूची है जिसमें में एक नाम मेरा भी है। वे चित्रकार के साथ-साथ एक इतिहासकार भी हैं। जिस लगन व जुनून से बुंदेली कला के प्रति उनका अनुसंधान, लेख मैंने देखे हैं, शायद ही किसी ने इतना काम किया हो। हिंदी व इंग्लिश दोनों ही भाषाओं में वे दक्ष हैं।

डॉ शुभेश की कला
बुंदेलखंड के कलाकारों में वो एक अलग स्थान रखते हैं। बुंदेलखंड के झाँसी ज़िले से सम्बन्ध रखने वाले शुभेश एक अनोखे चित्रकार हैं। मेरी नज़र में वे इस क्षेत्र के सबसे पड़े-लिखे चित्रकार हैं। वर्तमान में जितने भी वरिष्ठ चित्रकार हैं, उनमें लेखन के मामले में उनसे ज़्यादा काम किसी ने नही किया।
तत्कालीन समय जो भी रहा हो, जिसके चलते उनकी खोजें व लेखन कार्य सही रूप में लोगों तक नही पहुँचे। मगर उनके घर में उनके द्वारा लिखित काम को देख के लगता है कि इस चित्रकार ने बुंदेलखंड की कला को कितना सहेजने का काम किया है।
उनकी चित्र शैली की बात करें तो उनके चित्र अजंता के चित्रों की याद दिलाते हैं। अजंता व माइकल एंजिलो को अपना आदर्श मानने वाले डॉ शुभेष के चित्र हमें एक अलग ही दुनिया में ले जातें हैं। इन्होंने अंग्रेजों से युद्ध करती हुई झाँसी की रानी का चित्र बहुत ही विशाल कैनवास पर चित्रित किया था। यह चित्र कई वर्षों तक झाँसी के रेलवे स्टेशन की भव्यता में चार चंद लगता रहा। इसके अतिरिक्त मेघदूत के चित्रों की ऋंखला भी उनके चित्रों में अद्वितीय है |
बुंदेलखंड में चित्रकला के मजनू
कला के प्रति उनकी कला यात्रा व कला पर ऊपर बताया ही जा चुका है। निःसंदेह बुंदेलखंड की कला में उनका योगदान अतुलनीय है। बुंदेलखंड स्तर पर कई बार उनका सम्मान किया गया। आर्ट क्लब द्वारा उन्हें कालीचरण अवार्ड से भी उन्हें उनकी कला के योगदान के लिए सम्मानित किया गया। आज भी 85 वर्ष से अधिक आयु में सुनने की क्षमता कम होने पर भी वो चित्रण कार्य में लगे हुए हैं। नयी-नयी खोजों की जिज्ञासाओं को अपने दिल जीवित रखे हुए हैं | कला के प्रति इनके इसी लगन व सनक को देख कर वरिष्ठ पत्रकार स्व. राम सेवक ने उनके बारे में कहा,
शुभेश बुंदेलखंड में चित्रकला के मजनू हैं।
-वरिष्ठ पत्रकार स्व. राम सेवक
आज भी अगर कोई उनसे मिलने जायँ तो वे उसे कला के प्रति कला कर्म करने के लिए ज़रूर प्रेरित करते हैं। ये कहना भी ग़लत नहीं होगा कि समस्त बुंदेलखंड के चित्रकारों के लिए उनका प्रेरणा भरा संदेश बस यही है-
काम तो करना पड़ेगा…। काम के बिना कुछ नही होगा…।
-डॉ शुभेश
ऐसे प्रेरणा व कला के विकास को उत्साहित व्यक्तित्व वाले चित्रकार कई चित्रकारों के लिए आदर्श हैं। मैं धन्य हूँ कि मुझे आप जैसे गुरु का आशीर्वाद व मार्ग दर्शन मिला। आपके आदर्शों व बताए गए मार्गों पर चलने का मेरा पूरा प्रयास रहेगा। मेरा आपसे वादा है कि बुंदेलखंड की धारा को कला के रूप में विकसित करने का प्रयास मैं आजीवन करता रहूँगा।
आप जैसे महान कला गुरु व कला साधक को मेरा ह्रदय की गहराइयों से नमन व साधुवाद।
-मुईन अख़्तर (चित्रकार, कला शिक्षक)
लेखक के बारे में
मुईन अख़्तर
मुईन अख़्तर झाँसी के जाने-माने चित्रकार हैं। जलरंग माध्यम में इनके प्राकृतिक चित्र देखने योग्य हैं। वर्तमान में कला शिक्षा की सेवा के साथ-साथ कला के प्रोत्साहन व विकास में वे लगातार प्रयासरत हैं। अपने ब्लॉग व यूटूब चेंनल के माध्यम से वे लगातार कला शिक्षा व कला के प्रोत्साहन का काम कर रहे हैं। उनकी उपलब्धियों, योगदान व कला जीवन के विषय में जानने की लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें –

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Me bahut khushnasib hu ki mujhe dr shubhesh sir jaise guru mile aaj me jitna bhi art me shikh pai hu sir ki prerna or mehnat hai. Mueen bhaiya thanku …aap ne bahut hi achha lekh likha hai …bahut si baate yaad aa gai sir ki class ki..thanku mueen bhaiya thanku sir.
You are most welcome Sapana. We are proud of our Great Guruji.
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Mueen bohut hi Sundar lekh likha hai aapne. Me bhi usi samay unki vidhyarthi thi lekh padhkar Sanatan school ke sabhi drishya samne chitrit ho gae . Mera Dr. Subhesh sir ko naman 🙏. Or aapka lekh ke liye Mueen bohut hi Sundar lekh likha hai Abhinandan 👍