प्रसिद्ध चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुकार व लेखक सतीश गुजराल (Satish Gujral) अब नही रहे| उनका निधन 94 वर्ष की आयु में 26 मार्च 2020 में हुआ|
भारत सरकार ने सतीश गुजराल (Satish Gujral) को भारत के दुसरे सबसे बड़े सम्मान पुरष्कार “पदम् विभूषण” से 1999 में सम्मानित किया| वे भारत के पूर्व प्रधान मंत्री इंद्र कुमार गुजराल के बड़े भाई थे|
सतीश गुजराल (Satish Gujral) का प्रारंभिक जीवन
सतीश गुजराल (Satish Gujral) का जन्म 25 दिसम्बर 1925 में झेलम (अब पाकिस्तान) में हुआ था| आठ साल की आयु में पैर फिसलने के कारण इनकी टाँगे टूट गयीं थीं और सिर में गंभीर चोट लगने से इनको सुनने में परेशानी होने लगी| कला की शिक्षा लाहौर के मेयो स्कूल ऑफ़ आर्ट में प्राप्त की।
जिसमें विशेषकर इन्होने मूर्तिकला व ग्राफिक्स डिजाईन सीखी| इसके बाद सन 1944 में वे बोम्बे चले गये जहाँ उन्होंने सर जे जे स्कूल ऑफ़ आर्ट में दाखिला लिया| गुजराल ने इम्पीरियल सर्विस कॉलेज विंडसर यूके में भी कला का अध्यन किया| कहा जाता है कि स्वास्थ्य सम्बन्धी कारण से 1947 में उन्होंने पढाई बीच में छोड़ दी थी|
कला यात्रा
बताया जा चूका है कि सतीश गुजराल ने मेयो स्कूल ऑफ़ आर्ट, सर जे जे स्कूल ऑफ़ आर्ट तथा इम्पीरियल सर्विस कॉलेज विंडसर यूके में कला का अध्यन किया| सन 1952 में गुजराल को मक्सिको सिटी के “पलासियो डे बेलास अर्तेस” में अध्यन करने की स्कालरशिप मिली जहाँ उन्होंने 20 वीं सदी के प्रसिद्ध चित्रकारों- देअगो रिवेरा व डेविड अल्फारो सिकुइरोस के मार्गदर्शन में कला प्रशिक्षण प्राप्त किया|
वे आज़ादी के बाद के महान चित्रकार थे जिनके चित्रों को भारत के बटवारे व अमर्जेंसी के समय ने प्रभावित किया था| उन्होंने सन 1952 से लेकर 1974 तक अपनी मूर्तिकला व चित्रकला प्रदर्शनी दुनिया के कई शहरों में लगायी जिनमें न्यूयॉर्क, मोंट्रियल, बर्लिन और टोक्यो आदि प्रमुख हैं|
सतीश गुजराल-एक सफल वास्तुकार
सतीश गुजराल केवल चित्रकार व मूर्तिकार नही थे, वो एक सफल वास्तुकार भी थे| उन्होंने दुनियाभर के अनेक आवासीय भवनों, होटलों, विश्वविद्यालयों, व्यावसायिक इमारतें व धार्मिक स्थलों की उच्चस्तरीय वास्तु परियोजनाएं बनायीं हैं| इन इमारतों में से उनके द्वारा डिजाईन कीगयी नई दिल्ली में स्थित बेल्जियम दूतावास के भवन को ‘इंटरनेशनल फोरम ऑफ़ आर्किटेक्ट्स’ ने 20वीं सदी में दुनिया की 1000 शानदार इमारतों में जगह दी है|
कला शैली
सतीश गुजराल एक इसे रचनाशील चित्रकार हैं जो कभी किसी बंधन या नियम में नही बंधे| अपनी कला रचनात्मकता के दम पर उन्होंने माध्यमों में नए-नए प्रयोग किये और पारंपरिक कला माध्यमों के अतिरिक्त सेरेमिक, काष्ठ, धातु और पाषण में भी खूब काम किया|
गुजराल के चित्रों की चटकीली वर्ण योजना उनकी शैली की पहचान है जिसमें आकृति को प्रमुखता से देखा जा सकता है| मनावाक्रतियों के साथ कहीं-कहीं पशु पक्षी भी देखे जा सकते हैं|
मूर्तिकला में उनकी कृतियाँ भी बहुत आकर्षक हैं| काष्ठ, पाषण व धातु के प्रयोग से कई सुंदर व आकर्षक कृतियाँ उनके द्वारा सृजित की गयीं हैं|
उनके चित्रों के विषयों की अगर बात करें तो उन्होंने अपने चित्रों में भारतीय संस्कृति, लोककथा, पुराण, इतिहास व कई धर्मों के विषयों को प्रमुख रूप से स्थान दिया है| उनके चित्रों व कृतियों का संग्रह देश विदेश के कई प्रसिद्ध व विशाल संग्रहालयों में सुरक्षित हैं|
उपलब्धियां
आज सतीश गुजराल का अपनी प्रतिभा व कला जगत में अपने अमूल्य योगदान के कारण समस्त जगत में चर्चित व प्रसिद्ध नाम है| उनके योगदान व कला प्रतिभा के कर्ण उन्हें कई सम्मान व पुरस्कार मिले:
- पदम् विभूषण (1999)
- मिक्सिको का लियो नार्डो द विंसी पुरस्कार
- बेल्जियम राजा का “आर्डर आप क्राउन” सम्मान
- 2014 में ‘एन.डी.टी.वी. इंडियन ऑफ़ द इयर’ का सम्मान
- दो बार राष्ट्रिय पुरस्कार चित्रकला में
- एक बार राष्ट्रिय पुरस्कार मूर्तिकला में
इसके अलावा उन्हें 1989 में ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ आर्किटेक्चर’ तथा ‘दिल्ली कला परिषद’ द्वारा सम्मानित किया गया। नई दिल्ली के बेल्जियम दूतावास के भवन की परियोजना के लिये वास्तुरचना के क्षेत्र में उन्हें अंतर्राट्रीय ख्याति मिली है और इस इमारत को ‘इंटरनेशनल फोरम आफ आर्किटेक्ट्स’ द्वारा बीसवीं सदी की 1000 सर्वश्रेष्ठ इमारतों की सूची में स्थान दिया। विशेषरूप से दिल्ली व पंजाब की राज्य सरकारों ने भी उन्हें उनके कार्यों और उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया है।
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